*अमूल्य रतन* 09
अव्यक्त मुरली दिनांक: 4 मार्च 1969

शीर्षक: *होली के शुभ अवसर पर*

*संगम की होली*

होली में रंगा भी जाता है, जलाया भी जाता है, श्रृंगारा भी जाता है, साथ साथ कुछ मिटाया भी जाता है, यह सभी कर लेना इसको कहा जाता है होली मनाना।

*संगम का मुख्य श्रृंगार है मस्तक पर आत्मा का दीपक जलाना।*

होली अर्थात बीत चुकी; ड्रामा के ढाल की पॉइंट याद रखनी है। ड्रामा की सीन पर मंथन करना क्यों, क्या, कैसे से थकावट और टाइम वेस्ट होता है। इसके बजाय *ज्ञान का मंथन करना है।*